वरूथिनी एकादशी व्रत कथा – सम्पूर्ण जानकारी और महात्म्य
वरूथिनी एकादशी का महत्व
वरूथिनी एकादशी हिन्दू धर्म में अत्यंत पवित्र और पुण्यदायक व्रत माना जाता है। यह व्रत वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को आता है और इसका विशेष महत्व भगवान श्रीविष्णु की पूजा से जुड़ा हुआ है। शास्त्रों में वर्णित है कि इस दिन का व्रत करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
वरूथिनी एकादशी की पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार, एक बार राजा मंदाता ने इस व्रत का पालन किया और अपने जीवन के समस्त पापों से मुक्ति पाई। भविष्य पुराण में वर्णित है कि एक समय राजा मंदाता को एक राक्षस ने श्राप देकर कष्ट दिया था। इस कष्ट से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने वरूथिनी एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया, जिसके प्रभाव से वह पुनः अपने पूर्व रूप में आ गए।
इस व्रत को करने से शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक शुद्धि होती है। यह व्रत भाग्य में वृद्धि, अवांछित घटनाओं से रक्षा और दिव्य अनुग्रह प्राप्त करने का माध्यम है।
वरूथिनी एकादशी व्रत की तिथि और शुभ मुहूर्त
2025 में वरूथिनी एकादशी तिथि इस प्रकार है:
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तिथि प्रारंभ: 28 अप्रैल 2025, सोमवार को रात 09:16 बजे
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तिथि समाप्त: 29 अप्रैल 2025, मंगलवार को रात्रि 06:47 बजे
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व्रत पारण का समय: 29 अप्रैल 2025 को प्रातः 06:00 बजे से 08:40 बजे के बीच
वरूथिनी एकादशी का व्रत विधि
पूर्व तैयारी
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एक दिन पहले यानी दशमी तिथि को सात्विक भोजन ग्रहण करें।
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रात्रि में भगवान का स्मरण करते हुए ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें।
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प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
व्रत का प्रारंभ
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प्रातःकाल भगवान विष्णु की पूजा करें।
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श्रीहरि को तुलसी दल, पीले पुष्प, धूप-दीप अर्पित करें।
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एकादशी व्रत कथा का श्रवण या पाठ करें।
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पूरे दिन उपवास रखें। यदि पूर्ण उपवास संभव न हो, तो फलाहार करें।
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रात्रि को जागरण करें और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
पारण विधि
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अगले दिन द्वादशी के दिन ब्राह्मण या ज़रूरतमंदों को दान-दक्षिणा दें।
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अन्न, वस्त्र, तांबे के बर्तन और तुलसी दल का दान करें।
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व्रत का पारण विधिपूर्वक करें।
वरूथिनी एकादशी के लाभ
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पापों से मुक्ति: इस व्रत के प्रभाव से जीवन में अनजाने पाप भी नष्ट हो जाते हैं।
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स्वास्थ्य लाभ: मानसिक और शारीरिक शुद्धि होती है।
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धन-संपत्ति में वृद्धि: इस दिन व्रत रखने से लक्ष्मी कृपा प्राप्त होती है।
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मोक्ष की प्राप्ति: आत्मा को परम शांति और मुक्ति की ओर अग्रसर करती है।
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सकारात्मक ऊर्जा का संचार: पूरे वातावरण में दिव्यता का संचार होता है।
वरूथिनी एकादशी से जुड़े नियम
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इस दिन लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा का सेवन वर्जित है।
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भूमि पर सोना, परनिंदा, झूठ बोलना, क्रोध करना निषिद्ध है।
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सत्संग, भजन-कीर्तन, श्री विष्णु का स्मरण इस दिन विशेष फलदायी होता है।
वरूथिनी एकादशी – विशेष अनुशासन
यह व्रत केवल उपवास तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आचरण और मनोवृत्ति की पवित्रता पर भी आधारित है। जो व्यक्ति इस दिन दूसरों की सहायता करता है, दान करता है और संयमित जीवन जीता है, उसे भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
वरूथिनी एकादशी और ज्योतिषीय महत्व
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस दिन किए गए धार्मिक कर्म, पुण्य कार्य और दान का फल कई गुना अधिक होता है। साथ ही यह दिन शनि दोष, पितृ दोष तथा कुंडली के अशुभ प्रभावों को शमन करने के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।
निष्कर्ष
वरूथिनी एकादशी एक अत्यंत शक्तिशाली और पुण्यदायक व्रत है, जो न केवल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है, बल्कि दैहिक, दैविक और भौतिक समस्याओं से भी रक्षा करता है। इस व्रत को श्रद्धा और नियमपूर्वक करने से व्यक्ति का जीवन सफल और समृद्ध हो सकता है।